लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु का रहस्य क्या है?
स्वत्रंत भारत के दूसरे प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री, उनके व्यक्तित्व और सादगी के मामलो में आज के नेता से सैकड़ो कदम आगे थे, उनका मृत्यु भी एक रहस्य बन गया. समय समय पर मौजूदा सरकार ने सच सामने लेन के वादे किए है, मगर आज दिन तक (०३/१०/२०१८) तक कोई ठोस जानकारी नही मिल पाए है.
1965 में भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में मात दी थी। इसके बाद साल 1966 में 10 जनवरी को भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ था जिसे ताशकंद समझौता कहा जाता है। यह समझौता तत्कालीन सोवियन रूस के ताशकंद नाम के शहर में हुई थी, इसीलिए उसे ताशकंद समझौता के नाम से जाना जाता है। इसी के बाद ही 10 और 11 जनवरी की बीच रात में लाल बहादुर शास्त्रीकी मृत्यु हो गई थी। दावा किया जाता है कि शास्त्री की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई लेकिन उनके डॉक्टर ने कहा था कि पूर्व पीएम को दिल की कभी कोई बीमारी नहीं रही थी। लाल बहादुर शास्त्री के साथ उनके सूचना अधिकारी रहे प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नैयर भी थी। उन्होंने पूरी घटना के बारे में विस्तार से लिखा है। उन्होंने लिखा है, 'रात में मैं सो रहा था। अचानक दरवाजा खटखटाने की आवाज पर जाग गया। दरवाजा एक रूसी महिला खटखटा रही थी। उन्होंने मुझे बताया, 'आपके प्रधानमंत्री की हालत गंभीर है। मैंने तुरंत कपड़ा बदला और एक भारतीय अधिकारी के साथ शास्त्रीजी के कमरे में गया जो मेरे कमरे से कुछ दूरी पर था। वहां मैंने बिस्तर पर उन्हें मृत पाया।'
शास्त्रीजी के निधन की घटना ऐसी थी जिस पर किसी को विश्वास नहीं हो रहा था। कुलदीप नैयर ने अपनी जीवनी 'बियॉन्ड द लाइन्स' में लिखा है कि जब उन्होंने भारत में इसकी सूचना दी तो किसी को यकीन नहीं हो रहा था। उन्होंने यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया के पास फोन करके पहले सूचना दी थी। उन्होंने किताब में लिखा है, 'उस दिन नाइट ड्यूटी में सुरिंदर धिंगरा थे। 'शास्त्रीजी नहीं रहे' मैंने उनको यह फ्लैश चलाने को कहा। धिंगरा हंसने लगे और मुझसे कहा कि आप मजाक कर रहे हैं। धिंगरा ने मुझे कहा कि शाम के ही समारोह में तो हमने शास्त्रीजी की स्पीच कवर की है। मैंने फिर उनसे कहा कि समय बर्बाद नहीं करें और तुरंत फ्लैश चलाएं। फिर भी उनको यकीन नहीं आया। तब जाकर मुझे पंजाबी में कुछ कड़े शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ा जिसके बाद वह हरकत में आए।'
शास्त्रीजी के व्यक्तित्व से अपने तो अपने गैर भी बहुत प्रभावित थे। कुलदीप नैयर लिखते हैं कि शास्त्रीजी के निधन की बात सुनकर पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अय्यूब खान को भी दुख हुआ। उन्होंने लिखा है कि जनरल अय्यूब खान शास्त्रीजी के कमरे में सुबह 4 बजे आए थे और मेरी तरफ देखकर कहा, 'यहां एक शांति पुरुष पड़ा हुआ है जिसने भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी।'
मौत का राजलाल बहादुर शास्त्री की पत्नी ललिता देवी ने कहा था कि मौत के बाद उनका शरीर नीला था और कहीं-कहीं कटने का निशान भी था। ऐसा कहा गया कि लाल बहादुर शास्त्री का पोस्टमॉर्टम नहीं किया गया था लेकिन शव के नीला होने की वजह से यह आशंका जताई गई कि उनका पोस्ट मॉर्टम हुआ था।
बेटे ने मौत को बताया था अप्राकृतिकशास्त्रीजी के बेटे अनिल शास्त्री ने कहा था कि उनके पिता को ताशकंद शहर से 20 किलोमीटर दूर एक होटल में रखा गया। उनके कमरे में न तो फोन था न ही कोई बेल, न कोई शख्स मदद के लिए। उन्होंने कहा कि शास्त्रीजी हमेशा अपने साथ एक डायरी रखते थे लेकिन ताशकंद से उनकी डायरी वापस नहीं आई। जिस वजह से उनकी मौत को लेकर संदेह होता है। अनिल शास्त्री के मुताबिक पिता के शरीर पर नीले निशान साफ बताते थे कि उनकी मौत अप्राकृतिक थी।
गृह मंत्रालय ने लाल बहादुर शास्त्री की आकस्मिक मौत का मामला दिल्ली पुलिस को और नैशनल आर्काइव्स को सौंपा था। शास्त्री जी के बेटे ने इस कदम को बेतुका करार दिया था। उन्होंने कहा था कि, 'कैसे पीएम रहते हुए किसी की मौत के मामले की जांच जिला स्तर की पुलिस को सौंपा जा सकता है। बल्कि इसकी जांच उच्च अधिकारियों को करनी चाहिए थी।'
लाल बहादुर शास्त्री जी की पत्नी ललीता शास्त्री ने शव देखते ही हार्ट अटैक से मौत को मानने से इन्कार कर दिया उनका तर्क था की हार्ट अटैक से कैसे किसी व्यक्ति का शरीर नीला कैसे हो सकता है? उन्होने पोस्टमॉर्टम के साथ ही उच्च स्तरीय जांच की मांग भी कि थी जिसे तत्कालीन सरकार ने अनदेखा कर दिया।
लेकिन हैरतअंगेज बात यह रही की एक प्रधान-मंत्री की विदेश में मौत हो जाती हैं और यहाँ भारत में उनका पोस्टमॉर्टम भी नही कराया जाता हैं। यह बात बेहद गम्भीर थी, और तत्कालीन सरकार पर गम्भीर सवाल भी खड़े करती हैं कि, क्या यह जानबूझकर किया गया था? अगर उस समय पोस्टमॉर्टम किया जाता तो उनकी रहस्यमयी मृत्यु की सारी पहेलियां हल हो जाती, लेकिन अफसोस ऐसा नही हो सका।
गवाहों की मौत और सरकार की नीयत
आपको बताते चले की शास्त्री जी की मौत के दो गवाह थे, जो शायद इस पहेली से पर्दा उठा सकते थे। इन दोनों गवाहों को 1977 में नारायण संसदीय समिति के सामने गवाही देनी थी। पहले गवाह उनके डॉक्टर आरएन चुग थे। मगर संसदीय समिति के सामने गवाही देने जा रहे आरएन चुग को रास्ते में ही ट्रक ने टक्कर मार दी और उनकी मौत हो गई। दूसरे गवाह शास्त्री जी के नौकर रामनाथ को भी गाड़ी ने टक्कर मार दी और उसके बाद रामनाथ की याददाश्त चली गई और कुछ दिनों बाद इनकी भी मृत्यु हो गयी।
गृह मंत्रालय ने लाल बहादुर शास्त्री की आकस्मिक मौत का मामला दिल्ली पुलिस को और नैशनल आर्काइव्स को सौंपा। शास्त्री जी के बेटे ने इस कदम को
को बेतुका करार दिया था। उन्होंने कहा था कि, ‘कैसे पीएम रहते हुए किसी की मौत के मामले की जांच जिला स्तर की पुलिस को सौंपा जा सकता है। बल्कि इसकी जांच उच्च अधिकारियों को करनी चाहिए थी।’ लाल बहादुर शास्त्री की मौत की जांच के लिए राज नारायण कमिटी गठित की गई लेकिन यह कभी कोई निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाई। यहां तक की संसद की लाइब्रेरी में इस जांच से जुड़े कोई रिकॉर्ड नहीं है।
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